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श्रीगणेशचालीसा

राम सुन्दर दास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :9
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9726

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गणेश स्तुति


एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी।।11

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।
तब पहुँच्यो तुम धरि द्विज रूपा।।12

अतिथि जानि के गौरी सुखारी।
बहु विधि सेवा करी तुम्हारी।।13

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।।14

मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला।
बिना गर्भ धारण यहि काला।।15

गणनायक गुण ज्ञान निधाना।
पूजित प्रथम रूप भगवाना।।16

अस कहि अंतर्ध्यान रूप ह्वै ।
पालना पर बालक स्वरूप ह्वै।।17

बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना।
लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना।।18

सकल मगन सुख मंगल गावहिं।
नभ ते सुरन सुमन वरषावाहिं।।19

शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन सुत देखन आवहिं।।20

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